
“मुसलमान अब धोखा नहीं खाएगा: चंद्रशेखर आज़ाद नहीं, ओवैसी हैं हक़ की सच्ची आवाज़!”
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विशेष रिपोर्ट | NDUP
भारत का मुसलमान अब सियासी तौर पर पहले से कहीं ज़्यादा जागरूक हो चुका है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और अब आज़ाद समाज पार्टी जैसी पार्टियों ने मुसलमानों से सिर्फ़ वोट लिए, लेकिन बदले में उन्हें क्या मिला? न सुरक्षा, न सम्मान, न राजनीतिक प्रतिनिधित्व।
आज मुसलमानों के सामने एक और नया नाम उभरकर आ रहा है — चंद्रशेखर आज़ाद और उनकी आज़ाद समाज पार्टी। लेकिन एक सवाल सभी को खुद से पूछना चाहिए — क्या चंद्रशेखर आज़ाद वास्तव में वो नेता हैं, जिन पर मुस्लिम उम्मत यक़ीन कर सकती है?
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ओवैसी और चंद्रशेखर में ज़मीन-आसमान का फर्क
असदुद्दीन ओवैसी देश के सबसे तेज़तर्रार और पढ़े-लिखे मुस्लिम नेताओं में से एक हैं। वो कानून के जानकार (लॉयर), संसद में चार बार से ज़्यादा जीत चुके नेता, और मज़बूत वक्ता हैं, जिनकी बात को संसद में भी गंभीरता से सुना जाता है।
वहीं चंद्रशेखर आज़ाद, सिर्फ़ नारों और मीडिया स्टंट तक सीमित हैं। कोई ठोस राजनीतिक योजना, कोई मुस्लिम मुद्दों पर स्पष्ट नीति, और न ही संसद में कोई भूमिका।
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मुसलमानों की सियासी बेबसी और ठगे जाने की कहानी
कभी सपा के झूठे वादों में, कभी कांग्रेस की नर्म हिंदुत्व राजनीति में, और अब चंद्रशेखर की भावनात्मक राजनीति में — मुसलमानों को हर बार सिर्फ़ वोट बैंक समझा गया। लेकिन ओवैसी जैसे नेता ने CAA, NRC, Triple Talaq और मोब लिंचिंग जैसे मुद्दों पर ना सिर्फ आवाज़ उठाई, बल्कि संसद और सड़क दोनों पर संघर्ष किया।
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“अब नहीं चाहिए सस्ती लोकप्रियता, चाहिए सच्चा रहनुमा!”
भारत का मुसलमान अब समझने लगा है कि उसे सिर्फ़ फोटो खिंचवाने वाले, मीडिया में उछलने वाले नेता नहीं चाहिए — उसे चाहिए ऐसा लीडर जो संसद में उसकी आवाज़ बन सके। ओवैसी वो नाम है, जो पूरे भारत में मुस्लिम समाज की राजनीति को एक बौद्धिक, संवैधानिक और मज़बूत आधार पर खड़ा करने की कोशिश कर रहा है।
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NDUP की राय:
“हक़ की आवाज़ वही है जो डर के बिना बोले। और आज ओवैसी जैसा बोलने वाला कोई नहीं।”
मुसलमान को चाहिए अब भावनात्मक नहीं, बौद्धिक और मज़बूत नेतृत्व — और वो ओवैसी में नज़र आता है, चंद्रशेखर में नहीं।