कब्रिस्तान के पास डीजे–प्रोग्राम, रात भर शोर–शराबा; पुलिस के लिखित जवाब बनाम ज़मीनी हक़ीक़त
📰 क्या यूपी में दो तरह के क़ानून चलेंगे?
शामली पुलिस के दावों और ज़मीनी हक़ीक़त पर बड़ा सवाल
ज़िला शामली (विशेष रिपोर्ट):
झिंझाना थाना क्षेत्र में पिछले कई दिनों से एक बड़ा मामला चर्चा का विषय बना हुआ है। कब्रिस्तान के पास मेले और डीजे प्रोग्राम की तैयारियाँ और रात भर डीजे का शोर, धार्मिक आस्थाओं को ठेस पहुँचाने के साथ-साथ क़ानून-व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
👉 पुलिस का जवाब
शामली पुलिस ने सोशल मीडिया पर बार-बार यही बयान दिया कि –
“थाना प्रभारी झिंझाना को निर्देशित किया गया है कि न्यायालय द्वारा निर्धारित मानक के अनुसार ही डीजे प्रोग्राम कराया जाए।”
“एसडीएम द्वारा 6 अगस्त से 27 अगस्त तक अनुमति प्रदान की गई है, शर्तों का पालन कराया जाएगा।”
👉 लेकिन हक़ीक़त ज़मीन पर उलट!
रात को डीजे बज रहा है।
कब्रिस्तान के पास भीड़ और हुड़दंग हो रहा है।
मुस्लिम समाज की धार्मिक भावनाएँ आहत हो रही हैं।
थाना प्रभारी को कार्यवाही के निर्देश दिए जाने के बावजूद अब तक ठोस कार्यवाही नहीं हुई।
👉 सवाल ये उठता है
अगर अनुमति दी गई थी तो धार्मिक स्थल के पास डीजे और नाच-गाने की इजाज़त किस आधार पर?
अगर अनुमति शर्तों के साथ थी, तो उन शर्तों का पालन क्यों नहीं कराया गया?
क्या यूपी में अब दो तरह के क़ानून चलेंगे –
1. एक क़ानून आम जनता के लिए।
2. और दूसरा क़ानून कुछ रसूख़दार आयोजकों के लिए?
👉 घटनाओं का सिलसिला
कई बार शिकायतें हुईं, सोशल मीडिया पर वीडियो और पोस्ट डाले गए।
पुलिस ने सिर्फ़ जवाब दिया, कि कार्यवाही होगी।
रात में लगातार डीजे चलता रहा, जिससे साफ़ दिखा कि आदेशों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।
👉 जनता की आवाज़
स्थानीय लोग पूछ रहे हैं –
“क्या यूपी सरकार की गाइडलाइन सिर्फ़ कागज़ पर हैं?”
“धार्मिक स्थल के पास इस तरह का आयोजन किस क़ानून के तहत वैध है?”
“प्रशासन की भूमिका सिर्फ़ ट्वीट करने और औपचारिक जवाब देने तक ही क्यों सीमित है?”
⚖️ नतीजा:
शामली प्रशासन और पुलिस के दावे और ज़मीनी हक़ीक़त में बड़ा फ़ासला साफ़ दिखाई दे रहा है। यह मामला अब केवल एक मेला या डीजे का नहीं, बल्कि क़ानून के दोहरे पैमाने का बन चुका है

