
क्या असदुद्दीन ओवैसी को मिटाना चाहते हैं मुस्लिम रहनुमा?
गुलबर्गा में Waqf Act के खिलाफ सबसे बड़ी मीटिंग से ओवैसी को नज़रअंदाज़ करने पर उठा बवंडर
शुरुआत (लीड पैरा):
4 मई 2025 को गुलबर्गा (कर्नाटक) में All India Muslim Personal Law Board के बैनर तले हिंदुस्तान की सबसे बड़ी Protest Public Meeting होने जा रही है। मुद्दा है — केंद्र सरकार द्वारा लाया गया Waqf Amendment Act जिसके खिलाफ देशभर के मुसलमानों में बेचैनी है। लेकिन इस प्रोग्राम के पोस्टरों, बैनरों और विज्ञापनों में एक नाम पूरी तरह से गायब है — बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी साहब का।
क्या मुस्लिम समाज के खुद को रहनुमा कहने वाले, ओवैसी साहब को इरादतन हाशिये पर डाल रहे हैं?
जमीयत उलेमा-ए-हिंद हो, या ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड — दोनों के बड़े प्रोग्रामों में लगातार देखा जा रहा है कि AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को आमंत्रित नहीं किया जा रहा। और अगर बुलाया भी जाता है, तो मंच पर सबसे पीछे बैठा दिया जाता है। दूसरी ओर, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और अन्य सेक्युलर दलों के मुस्लिम सांसदों और नेताओं को तवज्जो दी जा रही है। सवाल यह उठता है कि क्या ओवैसी की स्पष्ट और बेबाक आवाज़, इन लोगों को खटक रही है?
असदुद्दीन ओवैसी — हैदराबाद से चार बार लोकसभा सांसद, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़े-लिखे, बेहतरीन वकील और देश-दुनिया में मुस्लिमों के हक की सबसे बुलंद आवाज़। उनकी पार्टी AIMIM ने न सिर्फ तेलंगाना बल्कि महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश में भी अपनी राजनीतिक ताकत दिखाई है। बावजूद इसके, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत जैसे संगठनों द्वारा उनका बहिष्कार करना मुसलमानों के बीच गहरे सवाल खड़े कर रहा है।
कटु सत्य (बड़ी हकीकत):
सवाल सिर्फ ओवैसी का नहीं है, सवाल है भारत के 20 करोड़ मुसलमानों का।
मौलाना महमूद मदनी हों या ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड — इन दोनों ने आज तक हिंदुस्तान के मुसलमानों के लिए क्या किया?
शिक्षा के क्षेत्र में मुसलमान सबसे पिछड़े हुए हैं। सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की हिस्सेदारी नगण्य है। सामाजिक-आर्थिक हालात इतने बदतर हैं कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट तक कहती है कि भारत का मुसलमान दलितों से भी ज्यादा गरीब है।
ना स्कूल-कॉलेज बनाए, ना यूनिवर्सिटी, ना स्कॉलरशिप्स, ना नौकरी दिलाने के लिए कोई ठोस लड़ाई। मुसलमानों की जमीनें Waqf के नाम पर खा ली गईं और अब Waqf एक्ट को लेकर दिखावे का विरोध।
क्या यह हकीकत नहीं कि इन रहनुमाओं ने मुसलमानों को सिर्फ नारे और भीड़ बनाने का साधन समझा?
क्या मुसलमानों के रहनुमा खुद ओवैसी को मिटाना चाहते हैं?
क्या ओवैसी की आवाज़ से डरकर, या सियासी ईर्ष्या के चलते उन्हें साइडलाइन किया जा रहा है?
यह इग्नोरेंस न सिर्फ एक नेता का अपमान है बल्कि करोड़ों उन मुसलमानों का भी, जो ओवैसी में उम्मीद की किरण देखते हैं।
अगर मुस्लिम Personal Law Board और जमीयत जैसी संस्थाएं यह सोचती हैं कि असदुद्दीन ओवैसी को नज़रअंदाज़ करके वह हिंदुस्तान के मुसलमानों की सियासत तय कर लेंगे, तो यह उनकी ऐतिहासिक भूल होगी। आने वाले वक़्त में यह मुद्दा और तेज़ी से गूंजेगा।
हिंदुस्तान का मुसलमान अब बेवकूफ़ नहीं है, वह पूछेगा — 70 साल में तुमने दिया क्या है और छीना क्या है?