
ग़ज़ा में पत्रकारों की हत्या: लोकतंत्र की आवाज़ को दबाने की कोशिश
ग़ज़ा में इज़रायली हमलों के दौरान पांच फ़िलस्तीनी पत्रकारों की मौत ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि पत्रकारिता आज के दौर में सबसे ख़तरनाक पेशों में से एक बन चुकी है। ये पत्रकार, जो ‘अल-क़ुद्स टुडे’ चैनल के लिए काम कर रहे थे, नुसेरात शरणार्थी शिविर के पास एक प्रसारण वैन में थे, जिसे इज़रायली सेना ने निशाना बनाया।
मारे गए पत्रकारों में फादी हस्सूना, इब्राहीम अल-शेख अली, मोहम्मद अल-लादा, फैसल अबू अल-क़ुमसान और अयमान अल-जादी शामिल हैं। अल-जादी उस समय अस्पताल के बाहर अपनी पत्नी का इंतज़ार कर रहे थे, जो उनके पहले बच्चे को जन्म दे रही थीं।
इज़रायली सेना का दावा है कि उन्होंने एक “आतंकवादी सेल” को निशाना बनाया, लेकिन पत्रकारों के परिवारों और सहकर्मियों का कहना है कि वे केवल अपना काम कर रहे थे। इस हमले की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा की गई है, और प्रेस स्वतंत्रता संगठनों ने इसे पत्रकारों के खिलाफ़ एक सुनियोजित हमला बताया है।
ग़ज़ा में पत्रकारों की स्थिति बेहद ख़तरनाक हो गई है। अंतरराष्ट्रीय पत्रकार महासंघ (IFJ) के अनुसार, अक्टूबर 2023 से अब तक ग़ज़ा में कम से कम 152 पत्रकार और मीडिया कर्मी मारे जा चुके हैं। यह आंकड़ा पत्रकारिता के इतिहास में अभूतपूर्व है और यह दर्शाता है कि कैसे युद्ध क्षेत्रों में सच्चाई की खोज करना जानलेवा हो सकता है।
भारत में भी पत्रकारों को अक्सर संदेह की निगाह से देखा जाता है, जबकि वे समाज के लिए महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। वे अपनी जान जोखिम में डालकर सच्चाई सामने लाते हैं, ताकि जनता को सही जानकारी मिल सके। ग़ज़ा में हुई पत्रकारों की हत्या हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम पत्रकारों की सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए पर्याप्त प्रयास कर रहे हैं?
यह समय है जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पत्रकारों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। पत्रकारों की हत्या न केवल एक व्यक्ति की मौत है, बल्कि यह लोकतंत्र की आवाज़ को दबाने की कोशिश है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि पत्रकार बिना डर के अपना काम कर सकें, क्योंकि एक स्वतंत्र और सुरक्षित पत्रकारिता ही किसी भी समाज की रीढ़ होती है।
ग़ज़ा में मारे गए पत्रकारों को हमारी श्रद्धांजलि और उनके परिवारों के प्रति संवेदना। उनकी कुर्बानी को हम कभी नहीं भूलेंगे।